Most Venerable Nandapal Mahathera Short Biography In Hindi

 परम श्रद्धेय भदंत नंदपाल महाथेरा (Nandapal Mahathera) बुद्धरत्न पुरस्कार सन्मानित श्रद्धेय भदंत नंदपाल महाथेरा की जीवनी आध्यात्मिक रूप से जागृत जीवन है। परम श्रद्धेय भदंत नंदपाल महाथेरा एक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय धम्म और ध्यान प्रशिक्षक है। जिन्होंने परम श्रद्धेय भदंत साधनानंद महाथेरा (बन भंते) (Sadhanananda Mahathera, Banabhante) की विरासत को जारी रखा है। परम श्रद्धेय भदंत नन्दपाल महाथेरा का बुद्ध शासन के प्रचार और संरक्षण में ध्रुव तारे के समान योगदान रहा है।

परम श्रद्धेय भदंत नंदपाल महाथेरा (Nandapal Mahathera) बुद्धरत्न पुरस्कार सन्मानित श्रद्धेय भदंत नंदपाल महाथेरा की जीवनी आध्यात्मिक रूप से जागृत जीवन है। परम श्रद्धेय भदंत नंदपाल महाथेरा एक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय धम्म और ध्यान प्रशिक्षक है। जिन्होंने परम श्रद्धेय भदंत साधनानंद महाथेरा (बन भंते) (Sadhanananda Mahathera, Banabhante) की विरासत को जारी रखा है। परम श्रद्धेय भदंत नन्दपाल महाथेरा का बुद्ध शासन के प्रचार और संरक्षण में ध्रुव तारे के समान योगदान रहा है। परम श्रद्धेय भदंत नन्दपाल महाथेरा का जन्म १० मई १९५२ (10 May 1952) में बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी इलाकों के (Chittagong hill tracts) रांगामाटि जिले के अंतर्गत एक सुदूर गाँव बालुखाली में हुआ था। बचपन से ही वह आध्यात्मिकता ज्ञान की खोज में थे। जब वह छोटा थे, तब वह आदरणीय बन भंतेजी के धम्म प्रवचन सुनने जाता थे, वह धम्म प्रवचनों को सुनकर बहुत प्रेरित थे, जिसका उनके प्रारंभिक जीवन पर प्रभाव रहा।  १९७० (1970) में १८ (18) वर्ष की आयु में महान आध्यात्मिक दृढ़ संकल्प के साथ, उन्होंने तिंतिला बन विहार, लंगडू, रंगमती में परम पूज्य बन भंते से श्रामणेर दीक्षा लिई ।  उन्होंने दो साल परम श्रद्धेय बन भंते के अधीन में धम्म अध्ययन  और अभ्यास किया। १९७२ (1972) में, अपने गुरु परम पूजनीय बन भंते के आशीर्वाद से वे बर्मा (अब  म्यांमार) तिपिटक का अध्ययन करने के लिए गये। शुरुआती दिनों में उनके लिए तिपिटक सीखना मुश्किल था क्योंकि, त्रिपिटक बर्मी भाषा में पढ़ाया जाता था।  दृढ संकल्प के साथ उन्होंने बर्मी भाषा सीखना शुरू किया।  उन्होने बर्मी भाषा ६ महीने के भीतर  सीखे और बडी सहजता से बर्मी भाषा बोलने लगे। पर  २० वर्ष की आयु में, उन्हें परम श्रद्धेय भदंत यु यालिंदा सयाडो द्वारा उच्च दीक्षा(उपसंपदा) दिई गई।    दो साल तक तिपिटक का अध्ययन करने के बाद, वह अपने गुरु परम पूज्य बन भंते के दर्शन और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए लौट आए। लेकिन उस समय  उन्होंने देखा अपने गुरु परम पुज्य बन भंते की सेवा करणेवाला कोई नहीं है, इससे  उनका हृदय परिवर्तन हुआ। उन्होने उसी क्षण मन बना लिया,आगे की पढ़ाई नहीं करेगा बल्कि  वहीं रहकर परम श्रद्धेय बन भंते जी की देखभाल और सेवा करेंगे, तो वह रुक ग‌ए।  जैसे-जैसे समय बीतता गया, परम पूज्य बन भंतेजी के शीष्यगणोकी संख्या बढ़ती गई।इस बीच मे उन्होंने ध्यान का अभ्यास करने का परम पूज्य बन भंतेजी से आग्रह किया। भंतेजी की अनुमति मिलने पर  उन्होंने गहन ध्यान के लिए एक आदर्श स्थान खोजना शुरू किया।   बंदुकभंगा संघ के लोगों ने भंते जी को ध्यान करने के लिए एक आदर्श स्थान के बारे में बताया।  यह स्थान एक ऊँची पहाड़ी की श्रृंखला के शिखर पर स्थित था।  इलाका उजाड़, खतरनाक, दूरस्थ, दुर्गम और यातायात करने में मुश्किल था। यह इलाका जंगली जानवरों का प्राकृतिक आवास था।  इलाके के बारे में भूतों की कहानियां अक्सर आसपास रहने वाले लोग से सुनाई जाती थी।  नतीजतन, जंगली चोटी पहाड़ में कोई भी इसमें उद्यम करने की हिम्मत नहीं करता है।    इस जंगली चोटी के पहाड़ को जमचुग, यम का पर्वत कहा जाता है।अतीत में, इसे बंडुक्कनमोन कहा जाता था क्योंकि दूर से यह एक ट्रिगर जैसा दिखता है। ६ जुन १९८३(6 June 1983), में परम पुज्य बन भंते जी की स्वीकृति और आशीर्वाद से, उन्होंने दो अन्य भिक्षुओं के साथ जमचुग पर्वत पर रहने लगे। उन्होंने कम से कम ५ वर्ष तक ध्यान करने का संकल्प किया।  लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते महीनों में , महीने बीतते जाते हैंवर्षों में, यह महसूस करने से बहुत पहले कि, धुतंगा और अंतर्दृष्टि ध्यान (विपश्यना) समथ का अभ्यास करते हुए १७ (17) साल बीत चुके हैं।   तत्कालीन माननीय  सीएचटी (चटगांव हिल ट्रैक्ट्स) मामलों के मंत्री श्री कल्प रंजन चकमाऔर स्थानीय लोगों की ओर से परम पूजनीय भदंत नंदपाल महाथेरा को  धम्म और ध्यान शिक्षा के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने सहर्ष निमंत्रण स्वीकार कर लिया।  सन २०००(2000), मे दिघिनाला बन विहार आ गए।  तब से वे लगातार बांग्लादेश और भारत में धम्म और ध्यान दोनों सिखा रहे हैं।  उन्होंने  बांग्लादेश और भारत में भिक्षुओं को प्रशिक्षित करने के लिए कई विहारों की स्थापना कीजिससे सकल मानव जाति की  आध्यात्मिक और नैतिक रूप  सेवा हो रही है।
Most Venerable Nandapal Mahathera Sitting in the Middle 

परम श्रद्धेय भदंत नन्दपाल महाथेरा का जन्म १० मई १९५२ (10 May 1952) में बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी इलाकों के (Chittagong hill tracts) रांगामाटि जिले के अंतर्गत एक सुदूर गाँव बालुखाली में हुआ था। बचपन से ही वह आध्यात्मिकता ज्ञान की खोज में थे।

जब वह छोटा थे, तब वह आदरणीय बन भंतेजी के धम्म प्रवचन सुनने जाता थे, वह धम्म प्रवचनों को सुनकर बहुत प्रेरित थे, जिसका उनके प्रारंभिक जीवन पर प्रभाव रहा।

 १९७० (1970) में १८ (18) वर्ष की आयु में महान आध्यात्मिक दृढ़ संकल्प के साथ, उन्होंने तिंतिला बन विहार, लंगडू, रंगमती में परम पूज्य बन भंते से श्रामणेर दीक्षा लिई । उन्होंने दो साल परम श्रद्धेय बन भंते के अधीन में धम्म अध्ययन और अभ्यास किया।

१९७२ (1972) में, अपने गुरु परम पूजनीय बन भंते के आशीर्वाद से वे बर्मा (अब म्यांमार) तिपिटक का अध्ययन करने के लिए गये। शुरुआती दिनों में उनके लिए तिपिटक सीखना मुश्किल था क्योंकि, त्रिपिटक बर्मी भाषा में पढ़ाया जाता था।

 दृढ संकल्प के साथ उन्होंने बर्मी भाषा सीखना शुरू किया। उन्होने बर्मी भाषा ६ महीने के भीतर सीखे और बडी सहजता से बर्मी भाषा बोलने लगे।

पर २० वर्ष की आयु में, उन्हें परम श्रद्धेय भदंत यु यालिंदा सयाडो द्वारा उच्च दीक्षा(उपसंपदा) दिई गई। 

 दो साल तक तिपिटक का अध्ययन करने के बाद, वह अपने गुरु परम पूज्य बन भंते के दर्शन और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए लौट आए। लेकिन उस समय उन्होंने देखा अपने गुरु परम पुज्य बन भंते की सेवा करणेवाला कोई नहीं है, इससे उनका हृदय परिवर्तन हुआ। उन्होने उसी क्षण मन बना लिया,आगे की पढ़ाई नहीं करेगा बल्कि वहीं रहकर परम श्रद्धेय बन भंते जी की देखभाल और सेवा करेंगे, तो वह रुक ग‌ए।


जैसे-जैसे समय बीतता गया, परम पूज्य बन भंतेजी के शीष्यगणोकी संख्या बढ़ती गई।इस बीच मे उन्होंने ध्यान का अभ्यास करने का परम पूज्य बन भंतेजी से आग्रह किया। भंतेजी की अनुमति मिलने पर उन्होंने गहन ध्यान के लिए एक आदर्श स्थान खोजना शुरू किया।

 बंदुकभंगा संघ के लोगों ने भंते जी को ध्यान करने के लिए एक आदर्श स्थान के बारे में बताया। यह स्थान एक ऊँची पहाड़ी की श्रृंखला के शिखर पर स्थित था।

 इलाका उजाड़, खतरनाक, दूरस्थ, दुर्गम और यातायात करने में मुश्किल था। यह इलाका जंगली जानवरों का प्राकृतिक आवास था। इलाके के बारे में भूतों की कहानियां अक्सर आसपास रहने वाले लोग से सुनाई जाती थी। नतीजतन, जंगली चोटी पहाड़ में कोई भी इसमें उद्यम करने की हिम्मत नहीं करता है। 

 इस जंगली चोटी के पहाड़ को जमचुग, यम का पर्वत कहा जाता है।अतीत में, इसे बंडुक्कनमोन कहा जाता था क्योंकि दूर से यह एक ट्रिगर जैसा दिखता है। ६ जुन १९८३(6 June 1983), में परम पुज्य बन भंते जी की स्वीकृति और आशीर्वाद से, उन्होंने दो अन्य भिक्षुओं के साथ जमचुग पर्वत पर रहने लगे। उन्होंने कम से कम ५ वर्ष तक ध्यान करने का संकल्प किया। 

लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते महीनों में , महीने बीतते जाते हैंवर्षों में, यह महसूस करने से बहुत पहले कि, धुतंगा और अंतर्दृष्टि ध्यान (विपश्यना) समथ का अभ्यास करते हुए १७ (17) साल बीत चुके हैं। 

तत्कालीन माननीय सीएचटी (चटगांव हिल ट्रैक्ट्स) मामलों के मंत्री श्री कल्प रंजन चकमाऔर स्थानीय लोगों की ओर से परम पूजनीय भदंत नंदपाल महाथेरा को धम्म और ध्यान शिक्षा के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने सहर्ष निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

सन २०००(2000), मे दिघिनाला बन विहार आ गए। तब से वे लगातार बांग्लादेश और भारत में धम्म और ध्यान दोनों सिखा रहे हैं। उन्होंने बांग्लादेश और भारत में भिक्षुओं को प्रशिक्षित करने के लिए कई विहारों की स्थापना कीजिससे सकल मानव जाति की आध्यात्मिक और नैतिक रूप सेवा हो रही है।

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